2013 की केदारनाथ आपदा से क्या है मां धारी देवी का संबंध?-इतिहास, आध्यात्मिकता और प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर उत्तराखंड के मनोरम धारी देवी मंदिर के बारे में हमारी व्यापक मार्गदर्शिका में आपका स्वागत है। इस लेख में, हम इस पवित्र मंदिर के जटिल विवरण, इसके महत्व, इसके आसपास की किंवदंतियों और विस्मयकारी परिवेश के बारे में विस्तार से जानेंगे जो इसे एक अवश्य देखने लायक स्थान बनाता है। धारी देवी मंदिर के आकर्षण और रहस्य का पता लगाने के लिए एक आभासी यात्रा शुरू करते समय हमसे जुड़ें।

मां धारी देवी का मंदिर वाला क्षेत्र श्रीनगर जल विद्युत परियोजना के निर्माण के बाद डूब रहा था. जिसके बाद परियोजना संचालित करने वाली कंपनी ने पिलर खड़े कर मंदिर का निर्माण करवाया था और देवी की मूर्ति को जलस्तर को देखते हुए उनके मूल स्थान से हटाया गया था. माना जाता है कि इसकी वजह से उस साल केदारनाथ आपदा आई थी, जिसमें सैकड़ों लोग काल के गाल में समा गए थे. कहा जाता है कि माता की प्रतिमा को 16 जून 2013 की शाम को हटाया गया था और उसके महज कुछ ही घंटों बाद केदारघाटी में भयंकर आपदा आ गई थी.
मनमोहक स्थान
राजसी हिमालय की गोद में बसा, धारी देवी मंदिर उत्तराखंड के धारी के शांत शहर में स्थित है। यह मंदिर अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है, जो इसकी दिव्य आभा को बढ़ाता है। यह स्थान अपने आप में आध्यात्मिकता और प्रकृति के बीच सहज सामंजस्य का प्रमाण है, जो इसे भक्तों, प्रकृति प्रेमियों और शांति की तलाश करने वाले यात्रियों के लिए एक आदर्श स्थान बनाता है।
मिथक और किंवदंती
धारी देवी मंदिर के चारों ओर बुने गए मिथकों और किंवदंतियों की समृद्ध टेपेस्ट्री रहस्य की एक परत जोड़ती है जो दुनिया के सभी कोनों से आगंतुकों को आकर्षित करती है। सबसे मनोरम कहानियों में से एक मंदिर की देवी, देवी धारी देवी के इर्द-गिर्द घूमती है। लोकप्रिय मान्यता के अनुसार, देवी पूरे दिन अपना रूप बदलती रहती है, सुबह एक युवा लड़की से लेकर शाम को एक परिपक्व महिला तक। इस घटना को क्षेत्र पर देवी की सुरक्षात्मक प्रकृति का प्रतिबिंब माना जाता है।
आध्यात्मिक महत्व
धारी देवी मंदिर स्थानीय लोगों और तीर्थयात्रियों के लिए अत्यधिक आध्यात्मिक महत्व रखता है। भक्त देवी धारी देवी का आशीर्वाद लेने के लिए मंदिर में आते हैं, जिन्हें प्राकृतिक आपदाओं से क्षेत्र की रक्षा करने वाली संरक्षक देवता माना जाता है। मंदिर सांत्वना और आशा के स्रोत के रूप में कार्य करता है, आगंतुक विश्वास और सकारात्मकता की एक नई भावना के साथ जाते हैं।
स्थापत्य चमत्कार
मंदिर की वास्तुकला देखने लायक है, जो पारंपरिक हिमालयी डिजाइन और जटिल विवरण का मिश्रण दर्शाती है। लकड़ी की नक्काशी, अलंकृत खंभे और जीवंत पेंटिंग इस क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को दर्शाती हैं। गर्भगृह में देवी धारी देवी की मंत्रमुग्ध कर देने वाली मूर्ति है, जो दिव्य ऊर्जा की आभा बिखेरती है।
तीर्थयात्रा और त्यौहार
धारी देवी मंदिर कई त्योहारों और मेलों की मेजबानी करता है जो बड़ी संख्या में भक्तों को आकर्षित करते हैं। नवरात्रि उत्सव बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है, जिसके दौरान मंदिर परिसर को रंगीन सजावट से सजाया जाता है और अनगिनत दीयों से रोशन किया जाता है। हवा भक्ति गीतों और मंत्रों से भर जाती है, जिससे भक्ति और उत्सव का माहौल बन जाता है।
प्रकृति का इनाम
अपने आध्यात्मिक महत्व के अलावा, धारी देवी मंदिर लुभावनी प्राकृतिक सुंदरता से घिरा हुआ है। हिमालय की ऊंची चोटियाँ मंदिर की सुरक्षा करती हुई एक आश्चर्यजनक पृष्ठभूमि प्रदान करती हैं। उफनती अलकनंदा नदी आसपास के वातावरण में एक मधुर संगीत जोड़ती है, जिससे एक ऐसा वातावरण बनता है जो शांतिपूर्ण और स्फूर्तिदायक दोनों है।
धारी देवी मंदिर कैसे पहुंचे
धारी देवी मंदिर तक पहुंचना अपने आप में एक साहसिक कार्य है। यात्रा में सुरम्य परिदृश्यों, घुमावदार सड़कों और विचित्र गांवों से होकर गुजरना शामिल है। निकटतम हवाई अड्डा देहरादून में जॉली ग्रांट हवाई अड्डा है, जबकि निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है। वहां से, कोई टैक्सी किराए पर ले सकता है या धारी देवी मंदिर तक पहुंचने के लिए बस ले सकता है।
धारी देवी मंदिर की कहानी
माता धारी देवी 7 भाइयों की इकलौती बहन थी। माता धारी देवी अपने सात भाइयों से अत्यंत प्रेम करती थी ,वह स्वयं उनके लिए अनेक प्रकार के खाने के व्यंजन बनाती थी और उनकी अत्यंत सेवा करती थी यह कहानी तब की है जब माँ धारी देवी केवल सात साल की थी । परन्तु जब उनके भाइयों को यह पता चला कि उनकी इकलोती बहन के ग्रह उनके लिए खराब हैं तो उनके भाई उनसे नफरत करने लगे ।
वैसे तो माता धारी देवी के सातों भाई माँ धारी देवी से बचपन से ही नफरत करते थे ,क्योंकि माँ धारी देवी का रंग बचपन से ही सांवला था ।
परन्तु माँ धारी देवी अपने सात भाइयों को ही अपना सब कुछ मानती थीं क्योंकि इनके माता – पिता के जल्दी गुजर जाने के कारण धारी देवी का पालन – पोसण अपने भाइयों के हाथों से ही हुआ था और उनके लिए अपने भाई ही सब कुछ थे ।
धीरे धीरे समय बीतता गया और धारी माँ के भाइयों की माँ के प्रति नफरत बढ़ती गयी, परन्तु एक समय ऐसा आया कि माँ के पाँच भाइयों की मोत हो गयी । और केवल दो शादी – शुदा भाई ही बचे थे और इन दो भाई की परेशानी और बढ़ती गयी क्योंकि इन दो भाइयों को ऐसा लगा कि कंही हमारे पाँच भाइयो की मोत हमारे इस इकलोती बहन के हमारे प्रति खराब ग्रहों के कारण तो नी हुयी क्योंकि उन्हें बचपन से यही पता चला था कि हमारी बहन के ग्रह हमारे लिए खराब हैं ।
और इन दो भाइयों को यह डर संताने लगा कि कहीं अब हमारी बारी तो नहीं है और इन दो भाइयों ने साथ में विचार विमर्श किया और अपनी इस इकलोती बहन को मारने की साजिश रचने लगे साथ में इनकी पत्नियों ने भी इन्हें यही करने की प्ररेणा दी कि वह अपनी बहन को मारदें ।
ओर उन दोनों भाइयों ने वही किया, इन दो भाइयों ने जब वह कन्या अर्थात माँ धारी केवल 13 साल की थी तो उनके दोनों भाइयों ने उनका सिर उनके धड़ से अलग कर दिया ओर उनके मृत – शरीर को रातों रात नदी के तट में प्रवाहित कर दिया।
ओर इस कन्या का सिर वहाँ से बहते – बहते कल्यासौड़ के धारी नामक गाँव तक आ पहुँचा, जब सुबह – सुबह का वक्त था तो धारी गाँव में एक व्यक्ति नदी तट के किनारे पर कपड़े धुल रहा था तो उन्होंने सोचा कि नदी में कोई लड़की बह रही है ।
उस व्यक्ति ने कन्या को बचाना चाहा परन्तु उन्होंने यह सोचकर कि में वहाँ जाऊँ तो जाऊँ कैसे, क्योंकि नदी में तो बहुत ही ज्यादा पानी था और वह इस डर से घबरा गए कि में कहीं स्वंय ही न बह जाऊँ और उसका धैर्य टूट गया और उसने सोच लिया कि में अब वह कन्या को नहीं बचायेगा।
परन्तु अचानक एक आवाज नदी से उस कटे हुए सिर से आयी जिसने उस व्यक्ति का धैर्य बढ़ा दिया, वह आवाज थी कि तू घबरा मत और तू मुझे यहाँ से बचा। और मैं तेरे को यह आश्वासन दिलाती हूँ कि तू जहाँ जहाँ पैर रखेगा में वहाँ वहाँ पे तेरे लिए सीढ़ी बना दूँगी, कहा जाता है कि कुछ समय पहले ये सीडिया यहाँ पर दिखाई देती थीं ।
कहा जाता है कि जब वह व्यक्ति नदी में कन्या को बचाने गया तो सच में अचानक एक चमत्कार हुआ, जहाँ जहाँ उस व्यक्ति ने अपने पैर रखे वहाँ – वहाँ पर सीढ़ियाँ बनती गयी ।
जब वह व्यक्ति नदी में गया तो उस व्यक्ति ने उस कटे हुये सिर को जब कन्या समझ कर उठाया तो वह व्यक्ति अचानक से घबरा गया वह जिसे कन्या समझ रहा था वह तो एक कट हुआ सिर है ।
फिर उस कटे हुए सिर से आवाज आई कि तू घबरा मत में देव रूप में हूँ और मुझे एक पवित्र, सुन्दर स्थान पर एक पत्थर पर स्थापित कर दे ।
ओर उस व्यक्ति ने वही किया जो उस कटे हुए सिर ने उस व्यक्ति को बोला क्योंकि उस व्यक्ति के लिए भी वह किसी चमत्कार से कम नहीं था कि एक कटा हुआ सिर आवाज दे, उस व्यक्ति के लिए सीढ़ी बनाएं, एवं उसे रक्षा का आश्वासन दे, यह सब देखकर वह व्यक्ति भी समझ गया कि यह एक देवी ही है।
जब उस व्यक्ति ने उस कटे हुए सिर को एक पत्थर पर स्थापित किया तो उस कटे हुए सिर न अपने बारे में सब कुछ बताया कि मैं एक कन्या थी, जो कि सात भाइयों की इकलौती बहन थी ओर मुझे मेरे दो भाइयों के द्वारा मारा दिया गया और यह सब कुछ बताकर उस कटे हुए सिर ने एक पत्थर का रूप धारण कर लिया।
तब से उस पत्थर की वहाँ पर पूजा अर्चना होने लगी और वहाँ पर एक सुन्दर धारी देवी मंदिर बनाया गया था। और जो उस कन्या का धड़ वाला हिस्सा था वह रुद्रप्रयाग के कालीमठ में माँ मैठाणी के नाम से प्रसिद्ध हुआ , यहाँ पर भी माँ का भव्य मंदिर है और इस मंदिर को बदन वाला हिस्सा भी कहा जाता है ।
कालीमठ भारत में 108 शक्ति स्थलों में से एक है, धार्मिक परम्पराओं के अनुसार कालीमठ एक ऐसा स्थान है जहाँ देवी काली ने रक्तबीज नामक राक्षस को मारा था और उसके बाद देवी पृथ्वी के नीचे चली गयी थी। शक्तिपीठों में कालीमठ का वर्णन पुराणों में भी मिलता है। कहा जाता है कि जब कोई व्यक्ति भी यहाँ पर सच्चे मन से आता है तो उसकी सभी मनोकामनायें पूर्ण होती है ।
देवी काली को समर्पित है मंदिर
देवी काली को समर्पित यह मंदिर इस क्षेत्र में बहुत पूजनीय है. एक पौराणिक कथन के अनुसार, एक बार भीषण बाढ़ से एक मंदिर बह गया और धारी देवी की मूर्ति धारो गांव के पास एक चट्टान के रुक गई थी. गांव वालों ने मूर्ति से विलाप की आवाज सुनी और देवी ने उन्हें मूर्ति स्थापित करने का निर्देश दिया. हर साल नवरात्रों के अवसर पर देवी कालीसौर की विशेष पूजा की जाती है. देवी काली का आशीर्वाद पाने के लिए दूर और नजदीक के लोग इस मंदिर में देवी के दर्शन करने आते हैं. मंदिर के पास एक प्राचीन गुफा भी मौजूद है.
निष्कर्ष
उत्तराखंड में धारी देवी मंदिर आध्यात्मिकता, पौराणिक कथाओं और प्राकृतिक सुंदरता के सामंजस्यपूर्ण मिश्रण का प्रमाण है। इसका महत्व इसके वास्तुशिल्प चमत्कार से कहीं अधिक है; यह एक ऐसी जगह है जो विश्वास जगाती है, सांत्वना देती है और आगंतुकों को खुद से और अपने आस-पास की दुनिया से दोबारा जुड़ने का मौका देती है। चाहे आप दैवीय आशीर्वाद चाहते हों, समृद्ध संस्कृति का पता लगाना चाहते हों, या बस प्रकृति की गोद में आराम करना चाहते हों, धारी देवी मंदिर किसी अन्य से अलग अनुभव है।